भारत का उच्चतम न्यायालय ( Supreme Court of India )

भारत का  उच्चतम न्यायालय 

( Supreme Court of India )

भारत मे न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है, जिसकी त्रिस्तरीय संरचना है, अर्थात उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय । जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का उच्चतम न्यायालय ( Supreme Court of India ) है । भारत का उच्चतम न्यायालय न्यायिक समीक्षा शक्ति के साथ भारत का शीर्ष न्यायालय है एवं भारत के संविधान के तहत न्याय की अपील हेतु अंतिम न्यायालय है ।   उच्चतम न्यायालय के बारे मे भारतीय संविधान मे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से प्रावधान लिया गया है । 

उच्चतम न्यायालय की पृष्ठभूमि 

1773 मे कलकत्ता मे रेग्युलेटिंग एक्ट के माध्यम से पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप मे सर्वोच्च न्यायाधिकरण ( Supreme Court of Judicature ) की स्थापना की गयी । बंगाल बिहार एवं उड़ीसा के यह सभी अपराधो की शिकायतों को सुनने तथा निपटान हेतु स्थापित किया गया था । 

भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के लिए एक संघीय न्यायालय की स्थापना कर दी गयी । संघीय न्यायालय के पास प्रान्तो और संघीय राज्यो के बीच विवादो को हल करने और उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त था । 

वर्ष 1947 मे भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ । साथ ही उच्चतम न्यायालय भी अस्तित्व मे आया एवं 28 जनवरी 1950 को इसकी पहली बैठक सम्पन्न हुई । 

संवैधानिक प्रावधान 

उच्चतम न्यायालय की स्थापना, गठन, अधिकारिता एवं शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है । उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के सभी न्यायालयों के लिए बाध्यकारी है ।  उच्चतम न्यायालय के बारे मे संविधान के भाग 5, अध्याय 6  मे एवं अनुच्छेद 124 से 147 तक मे प्रावधान किया गया है । इसमे न्यायालय के संगठन, स्वतन्त्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है । 

उच्चतम न्यायालय का संगठन 

संविधान के अनुच्छेद 124 (1) मे उच्चतम न्यायालय के गठन के सम्बन्ध मे प्रावधान किया गया है, जिसमे यह कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय मे एक मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीश ( कुल 8 न्यायाधीश ) होंगे तथा संसद समय समय पर न्यायाधीशो की संख्या का निर्धारण कर सकती है । संसद ने न्यायाधीशो की संख्या निर्धारित करने के लिए 1956 उच्चतम न्यायालय ( न्यायाधीशो की संख्या ) अधिनियम 1956 पारित किया और न्यायाधीशो की संख्या 11 कर दी गयी । इस अधिनियम मे संशोधन कर न्यायाधीशो की संख्या मे कई बार वृद्धि की गयी है । न्यायाधीशो की संख्या 1960 मे 14, 1977 मे 18, 1986 मे 26 कर दी गयी ।  बाद मे यह संख्या 31 कर दी गयी । वर्तमान समय मे उच्चतम न्यायालय मे एक मुख्य न्यायाधीश तथा 33 अन्य न्यायाधीश ( कुल 34 न्यायाधीश ) है ।

न्यायाधीशो की योग्यता - 

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप मे नियुक्त होने के लिए किसी व्यक्ति मे निम्नलिखित योग्यता की अपेक्षा की जाती है - 

1. वह भारत का नागरिक हो ।

2. वह किसी उच्च न्यायालय मे लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो अथवा 

3. वह उच्च न्यायालय या किसी भी न्यायालय मे कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप मे कार्य कर चुका हो अथवा 

4. वह राष्ट्रपति की राय मे एक पारंगत विधिवेत्ता हो । 

उच्चतम न्यायालय का स्थान 

उच्चतम न्यायालय का स्थान ( अनुच्छेद 130 ) - उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली मे स्थित है, लेकिन यह नई दिल्ली के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर भी सुनवाई कर सकता है इस अन्य स्थान का निर्धारण मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की अनुमति से कर सकते है । 

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो की नियुक्ति 

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा अन्य न्यायाधीशो की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के परामर्श पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है ।  

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

संविधान के अनुच्छेद 126 मे कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करने के सम्बन्ध मे प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार जब कभी भी मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या मुख्य न्यायाधीश अपने कर्तव्यो का पालन करने मे असमर्थ हो अथवा मुख्य न्यायाधीश को संसद द्वारा पारित समावेदन पर राष्ट्रपति द्वारा उसके पद से हटा दिया गया हो या उसने स्वंय त्यागपत्र दे दिया हो, तो राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो मे से किसी भी न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश के कर्तव्यों का पालन करने के लिए नियुक्त कर सकता है । 

तदर्थ न्यायाधीशो की नियुक्ति 

संविधान के अनुच्छेद 127 मे यह प्रावधान किया गया है कि मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्चतम न्यायालय मे न्यायाधीश के रूप मे नियुक्त किये जाने की योग्यता रखने वाले किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर तब तदर्थ न्यायाधीश के रूप मे नियुक्ति कर सकता है, जब उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने के लिए न्यायाधीशो की आवश्यकता हो । इस प्रकार नियुक्त किये गये न्यायाधीश को वे सभी अधिकार, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार प्राप्त होंगे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को प्राप्त होते है ।

उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना -

अनुच्छेद 129 में उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय (Court of Record) के रूप में कार्य करता है तथा अपनी अवमानना ( Court of Contempt) के लिए दण्ड भी दे सकता है ।

न्यायाधीशो द्वारा शपथ ग्रहण 

संविधान के अनुच्छेद 124 (6) मे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो की शपथ के बारे मे प्रावधान किया गया है । इसके अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो को शपथ राष्ट्रपति द्वारा दिलायी जाती है ।

न्यायाधीश निम्नलिखित के लिए शपथ ग्रहण करते है -

1. विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा के लिए, 

2. भारत की प्रभुतता तथा अखंडता को अक्षुण रखने के लिए ,

3. सम्यक प्रकार से श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्त्ताव्यों का भय या पक्षपात अनुराग या द्वेष के बिना पालन करने के लिए, तथा 

4. संविधान एवं विधियों की मर्यादा बनाये रखने के लिए ।

वेतन 

1950 मे जब संविधान को लागू किया गया था, तब मुख्य न्यायाधीश का वेतन 5,000 रु. तथा अन्य न्यायाधीशो का वेतन 4,000 रु. प्रतिमाह था । तब से आज तक न्यायाधीशो के वेतन और भत्तो मे समय-समय पर वृद्धि की जाती रही है । वर्तमान मे मुख्य न्यायाधीश का वेतन 2,80,000 हजार रु. प्रतिमाह एवं अन्य न्यायाधीशो का वेतन 2,50,000 रु. प्रतिमाह है । समस्त वेतन एवं भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते है । संविधान के अनुच्छेद 125 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो के वेतन, भत्तो एवं विशेषाधिकारों मे उनकी नियुक्ति के पश्चात कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जाएगा, जो उनके लिए अलाभकारी हो । 

पदावधि 

अनुच्छेद 124 (2) के अनुसार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रहते है । किन्तु 65 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पूर्व भी वह राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पद मुक्त हो सकते है अथवा उन्हे सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद के दोनों सदनो द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा पद से हटाया जा सकता है ।  

 न्यायाधीशो को पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रक्रिया 

उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो को उनके पद से हटाने के लिए संविधान मे प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब ही  हटाया जा सकता, जब  कि वह कदाचार और समर्थता का दोषी  हो और इस आधार पर हटाये जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल संख्या संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यो के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा तथा समर्थित समावेदन राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र मे रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश दिया हो । 

न्यायाधीश ( जाँच ) अधिनियम, 1968

संविधान के द्वारा संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी न्यायाधीश के विरुद्ध संसद के समक्ष समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या समर्थता की जाँच और सिद्ध करने की प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन कर सकती है । संसद ने इस अधिकार का प्रयोग कर के न्यायाधीश ( जाँच ) अधिनियम, 1968 को अधिनियमित किया । इस अधिनियम की धारा 3 मे न्यायाधीशो के विरुद्ध सामवेदन रखने की प्रक्रिया विहित की गयी है । इसके अनुसार किसी न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए लोकसभा के कम से कम 100 अथवा राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्यो द्वारा सभापति या अध्यक्ष को नोटिस दिया जाना चाहिय । राज्यसभा सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष नोटिस के साथ सलग्न तथ्यो का परिशीलन करने के बाद यह निर्णय करता है कि वह न्यायाधीश को पदमुक्त करने की मांग को स्वीकार करें या निरस्त कर दें । यदि सभापति या अध्यक्ष पदमुक्त करने के नोटिस को स्वीकार करते है तो वह न्यायाधीश के विरुद्ध जाँच के लिय तीन सदस्य समिति का गठन करेंगे . इस समिति के सदस्य इस प्रकार होंगे  :- 

1.  एक उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश

2. किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश  

3.  ऐसा व्यक्ति जो सभापति अथवा अध्यक्ष की राय मे  प्रसिद्ध न्यायाविद अथवा विधिवेत्ता हो। 

यदि यह समिति अपनी रिपोर्ट मे न्यायाधीश पर लगाये गये आरोप की पुष्टि कर देती है, तो सभापति अथवा अध्यक्ष इस रिपोर्ट को संसद के समक्ष रखते है । यदि संसद के दोनों सदन अपने अलग-अलग विशेष बहुमत से न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव पारित कर देते है, तो राष्ट्रपति न्यायाधीश को उसके पद से हटाने का आदेश पारित कर सकते है । लेकिन राष्ट्रपति के इस आदेश की समीक्षा उच्चतम न्यायालय कर सकता है ।

नोट 1 :- न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव संसद के एक ही सत्र मे प्रस्तावित एवं पारित होना चाहिए ।

नोट 2 :- अब तक उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी को पद से हटाने के लिए 1993 मे संसद मे महाभियोग की कार्यवाही चली थी लेकिन वह कार्यवाही आवश्यक बहमत के अभाव मे असफल हो गयी और न्यायाधीश पर महाभियोग का पारित ना हो सका था । 

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार 

उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत ऐसे मामले आते है जिनकी सुनवाई करने का अधिकार किसी उच्च न्यायालय अथवा अधीनस्थ न्यायालयों को प्राप्त नहीं होता है । उच्चतम न्यायालय  को निम्नलिखित मामलो मे क्षेत्राधिकार प्राप्त है -

1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार - 

उच्चतम न्यायालय को निम्नलिखित मामलो मे क्षेत्राधिकार प्राप्त है -

1. भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यो के मध्य  उत्पन्न विवादो मे, 

2. भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यो और एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादो मे,

3. दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद मे, जिसमे उनके वैधानिक अधिकरों का प्रश्न निहित हो । 

प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा, जिसमे किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल हो ।

समवर्ती प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार - मूल अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उच्चतम न्यायालय के पास समवर्ती प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार है . इन अधिकारों को लागू करने के लिए उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के अधीन 5 प्रकार की याचिका ( Writ ) बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेक्षण, प्रतिषेद एवं अधिकार पृच्छा जारी कर सकता है .

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार - 

देश का सर्वोच्च एवं अंतिम न्यायालय होने के नाते उच्चतम न्यायालय देश का अंतिम और सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय भी है । अनुच्छेद 132 के अनुसार इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है । 

उच्चतम न्यायालय मे निम्नलिखित मामलो मे अपील की जा सकती है -

1. संवैधानिक मामलो मे अपील  - संवैधानिक मामलो मे उच्च न्यायालयों के निर्णय, डिक्री तथा अंतिम आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय मे तभी अपील की जा सकती है, जब संविधान की व्याख्या से संबन्धित विधि के किसी महत्तवपूर्ण प्रश्न पर अनेक उच्च न्यायालयो ने भिन्न-भिन्न निर्णय दिये हो और उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय दिया हो । संवैधानिक मामलों मे की गयी अपील की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ का गठन किया जाता है, जिसमे कम से कम 5 न्यायाधीशो शामिल किये जाते है ।

संवैधानिक मामलों में अपील तब की जा सकती है -

(i) उच्च न्यायालय यह प्रमाणपत्र दे दे कि मामलो मे विधि का बहुत जटिल प्रश्न निहित है, जिसके लिए संविधान की व्याख्या आवश्यक है ।

(ii) उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र ना दे, तब उच्चतम न्यायालय इस सम्बन्ध मे स्वंय अपील करने की आज्ञा दे सकता है । 

2. दीवानी (सिविल) मामलों मे अपील  - संविधान के अनुच्छेद 133 के अनुसार भारत राज्य क्षेत्र मे स्थित किसी उच्च न्यायालय  के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय मे तब अपील की जा सकती है, जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि - 

(i) मामलो मे विधि या सार्वजनिक महत्त्व का कोई सारभूत प्रश्न निहित है, तथा 

(ii) मामले का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है । 

3. आपराधिक (फौजदारी) मामलो मे अपील  - अनुच्छेद 134 के अनुसार किसी उच्च न्यायालय द्वारा आपराधिक मामलो मे दिये गये निर्णयो के विरुद्ध अपील की जा सकती है । यदि -

(i) उच्च न्यायालय ने अपील मे किसी अभियुक्त की दोष मुक्ति के आदेश को परिवर्तित करके उसे मृत्यु दंडादेश दिया हो । 

(ii) किसी उच्च न्यायालय ने अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत किसी अधीनस्थ न्ययालय मे लम्बित वाद को परीक्षण के लिए अपने पास अन्तरित कर लिया है और अभियुक्त को दोषसिद्ध करके मृत्यु दण्ड दिया है ।

(iii) उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मामला उच्चतम न्यायालय मे अपील किये जाने योग्य है । 

4. विशेष इजाजत के अपील - अनुच्छेद 136 के अनुसार जब उच्चतम न्यायालय अपने विवेक से किसी उच्च न्यायालय या न्यायिक अधिकरण के निर्णय के विरुद्ध अपील करने की इजाजत दे, तब उच्चतम न्यायालय मे अपील की जा सकती है ।

3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार - 

संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि जब उसे यह प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हो गया है या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का है या ऐसे व्यापक महत्तव का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना आवश्यक है, तो वह उस पर उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है । उच्चतम न्यायालय मामले की सुनवाई करके उस पर अपनी राय राष्ट्रपति को दे सकता है ।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को अपनी राय देने के लिए बाध्य नहीं है और ना ही राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी राय को मानने के लिए बाध्य है ।

4. पुनर्विलोकन क्षेत्राधिकार - 

अनुच्छेद 137 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय संसद या विधान मंडलो द्वारा पारित किसी अधिनियम तथा कार्यपालिका द्वारा दिये गये किसी आदेश की वैधानिकता का पुनर्विलोकन कर सकता है । 

5. अन्तरण का क्षेत्राधिकार - उच्चतम न्यायालय को अन्तरण का निम्नलिखित क्षेत्राधिकार प्राप्त है -

(i) उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय में लम्बित मामलों को अपने यहाँ अन्तरित कर सकता है ।

(ii) वह किसी उच्च न्यायालय में लम्बित मामलों को दूसरे उच्च न्यायालय में अन्तरित कर सकता है ।


वर्तमान में उच्चतम न्यायालय ( Supreme Court ) के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एन. वी. रमण है, जो देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश है ।

देश के पहले मुख्य न्यायाधीश हीरा लाल जे. कानिया थे ।

मीरा साहिब फातिमा बीबी उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश थी ।

अभी तक कोई भी महिला उच्चतम न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश नहीं बन सकी है ।

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में कुल चार महिला न्यायाधीश कार्यरत है -

1. इंद्रा बनर्जी 

2. हेमा कोहली 

3. बेला त्रिवेदी 

4. बी. वी. नागरत्ना .


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