बैक्टीरिया जनित रोग (Bacterial diseases)
प्रमुख मानव रोग, लक्षण एवं उपचार
बैक्टीरिया जनित रोग (Bacterial diseases)
1. आंत्र ज्वार (Typhoid) – यह रोग सोलमोनेला टाइफोसा (Solmonella typhosa) नामक जीवाणु से होता है . इसे आंत का बुखार नाम से भी जाना जाता है . यह रोग पानी की गन्दगी से फैलता है . रोगी की प्लीहा (Spleen) और आंत्र योजनी ग्रंथियां बढ़ जाती है . रोगी को तेज बुखार रहता है और सिर दर्द बना रहता है . इसकी चिकित्सा के लिये क्लोरोमाइसिटिन औषधि का उपयोग किया जाता है .
2. तपेदिक या राजयक्ष्मा (Tuberculosis) – इस रोग को यक्ष्मा या काक रोग भी कहा जाता है . यह एक संक्रामक रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक जीवाणु के कारण उत्पन्न होता है . इस रोग के लक्ष्ण है – ज्वर, रात्रि में पसीना आना, भूख की कमी, शक्ति और वजन में ह्रास, पाचन और तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी आदि .
इस रोग के उपचार के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दिया जाता है और Para amino Salysilic Acid (PAC) आइसोनियाजाइड मुहँ से ली जाती है . Bacillus Calmette Guerin (B C G) एक प्रतियक्ष्मिकीय टीका है .
3. प्लेग (Plague) – यह एक छुआ-छुत की बीमारी है जो बैसिलस पेस्टिस (Bacillus Pestis) नामक जीवाणु से फैलती है . इसका संक्रमण चूहों पर पाये जाने वाले पिस्सुओं से होता है क्योंकि पिस्सुओं (Fleas) के शरीर में प्लेग का बैक्टिरिया होता है . जेनोप्सला केओपिस (Xanopsylla cheopis) प्लेग का सबसे भयानक पिस्सू है क्योंकि यह आसानी से चूहे से मानव तक पहुँच जाता है . सल्फाड्रग्स एवं स्ट्रेप्टोमाइसिन दवाओ का उपयोग इस रोग के उपचार में किया जाता है .
4. हैजा (Cholera) – हैजा विब्रियो कॉलेरा (Vibrio Cholera) नामक जीवाणु से होने वाला रोग है और मक्खियों से फैलता है . रोगी के शरीर में जल की कमी हो जाती है तथा रक्त का संचार धीमा पड़ जाता है .
5. डिप्थीरिया (Diptheria) – यह रोग कोरोनीबैक्टीरियम डिप्थीरिया (Corynebacterium diphtheriae) नामक जीवाणु से होता है . इस रोग में गले में कृत्रिम झिल्ली बन जाती है और श्वासावरोध हो जाता है, जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है . यह रोग अधिकांशत: संक्रमित दूध के माध्यम से फैलता है .
इस रोग के उपचार में डिप्थीरिया एन्टी टोक्सिन (D P T) का टीका लगवाना चाहिए और सफाई का पूरा ध्यान देना चाहिए . रोगी के नाक और मुहँ को पोटैशियम परमैंगनेट के घोल से धोना चाहिए .
6. टिटनेस (Tetanus) – सामान्यत: इस रोग को लॉक-जॉ (Lock-Jaw) या धनुष्टंकार के नाम से भी जाना जाता है . यह रोग बैसीलस टेटनी (Bacillus tetani) नामक जीवाणु से होता है . यह रोग के जीवाणु घाव से होकर शरीर में प्रवेश करते है . इस रोग से पेशियों में आंकुचन ओर प्रसरण नहीं हो पाता और शरीर में अकड़न होने लगती है . इस रोग के उपचार में पेनीसिलीनप्रतिजैविक का इंजेक्शन लेना चाहिए बचाव के टिटवैक या A. T. S. का इंजेक्शन लेना चाहिए .
7. कोढ़ या कुष्ठ (Leprosy) – यह एक संचरणशील रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) नामक जीवाणु से फैलता है . इस रोग से ऊतकों का अपक्षय होने लगता है . शरीर पर चकते प्रकट होने लगते है तथा कोहनी और घुटने के पीछे, एड़ी और कलाई के अगल-बगल की तंत्रिकाएँ प्रभावित हो जाती है . इस रोग की रोकथाम के लिए M. D. T. दवाओं का उपयोग किया जाता है इसमें तीन दवायें शामिल है (I) डेपसोन (II) क्लोफाजीमीन (III) रिफैमिसीन .
8. निमोनिया (Pneumonia) – यह रोग डिप्लोकोकास न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae) नामक जीवाणु से होता है . रोगी को तेज बुखार तथा सांस् लेने में कठिनाई होती है . फेफड़ो में सूजन आ जाती है . इस रोग से ग्रसित रोगी को ठण्ड से बचाते है तथा एन्टीबायोटिक्स औषधियाँ प्रयोग करते है .
9. काली खांसी (Whooping cough) – यह रोग हिमोफिलस परटूसिस (Haemop-hilus pertusis) नामक जीवाणु से फैलता है . इस रोग का प्रसार प्राय: हवा द्वारा होता है . यह रोग मुख्यतः बच्चो को होता है . इस रोग से बचने के लिए काली खांसी का टीका (DPT) लगवाना चाहिए .
10. सिफलिस (Syphilis) – यह रोग का कारक ट्रेपोनेमा पैलिडम (Treponema pallidum) नामक जीवाणु है .
11. गोनोरिआ (Gonorrhoea) – इस रोग का कारक लाइसेरिया गोनोरियाई (Neisseria gonorrhoeae) नामक जीवाणु है .
Comments
Post a Comment